मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे।
दोहा – मेरा फन मेरी आवाज,
मेरे तेवर लेजा,
सब का सब अपनी ही,
जागीर समझकर लेजा,
और मैने अपने हाथो की लकीरे,
भी अब तुझे दे दी है,
गर ये भी रास ना आये तो,
फिर मेरा मुकद्दर लेजा।
मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे,
मै तो मै तो,
मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे,
अजी मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे,
महसूस ही करोगे मुझे,
छू ना पाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
हम ना रहेंगे एक दिन,
ऐसा भी आएगा,
हम ना रहेंगे एक दिन,
ऐसा भी आएगा,
तस्वीर को गले से मेरी,
तुम लगाओगे,
तस्वीर को गले से मेरी,
तुम लगाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
कागज के इस लिबास को,
बदन से उतार दो,
कागज के इस लिबास को,
बदन से उतार दो,
पानी बरस गया तो किसे,
मुँह दिखाओगे,
पानी बरस गया तो किसे,
मुँह दिखाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
गम क्यूँ किसी गरीब का,
हँसते हो देखकर,
गम क्यूँ किसी गरीब का,
हँसते हो देखकर,
करवट जो क़्क्त लेगा तो,
सब भूल जाओगे,
करवट जो क़्क्त लेगा तो,
सब भूल जाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
ऐ दोस्त मेरी याद तुम्हे,
आएगी बहुत,
ऐ दोस्त मेरी याद तुम्हे,
आएगी बहुत,
मेरी गजल को जब कभी,
गुनगुनाओगे,
मेरी गजल को जब कभी,
गुनगुनाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
तुम आइना जो हो तो रहो,
एक हाथ में,
तुम आइना जो हो तो रहो,
एक हाथ में,
वर्ना इधर उधर में कहीं,
टूट जाओगे,
वर्ना इधर उधर में कहीं,
टूट जाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे,
मै तो मै तो,
मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे,
अजी मैं तो हवा हूँ किस तरह,
पहरे लगाओगे,
महसूस ही करोगे मुझे,
छू ना पाओगे,
मैं तो हवा हू किस तरह,
पहरे लगाओगे।BS।
– दिलीप जी गवैया के कुछ प्रसिद्ध शेर और दोहे –
दोहा – छुप के तन्हाई में,
रोने की जरूरत क्या है,
अब समझ में तेरी आया,
के मोहब्बत क्या है,
जिसमे मोती की जगह,
हाथ में मिट्टी आये,
इतनी गहराई में,
जाने की जरूरत क्या है,
बेटा कहलाने के,
लायक ही नहीं वो बेटा,
जो अपनी माँ से पूछे,
तेरे दूध की कीमत क्या है,
मैंने बाजार में बिकने से,
बचाया था जिसे,
आज वो मुझसे पूछ रहा है,
के तेरी कीमत क्या है।
दोहा – शोहरत की मीनार पर चढ़कर,
कब तक यूँ इतराओगे,
तन्हाई जब धोखा देगी,
तो मुंह के बल गिर जाओगे,
और एक पे विश्वास कायम करलो,
वरना यूँ पछताओगे,
यूँ तो दुनिया में लाखों हंसी है,
किस किस को अपनाओगे।
दोहा – वो प्यासे थे और,
समंदर सामने था,
खड़े थे छुप के,
एक डर सामने था,
अरे जला देता मैं,
दुश्मन की तमाम बस्ती,
मगर एक दोस्त का,
घर सामने था।
दोहा – मुझको दीवाना समझते है,
तेरे शहर के लोग,
मेरे दामन से उलझते है,
तेरे शहर के लोग,
मैं गया वक्त हूँ,
वापस नहीं आने वाला,
क्यों मेरी राहों को,
तकते है तेरे शहर के लोग।
दोहा – दर्द होता नहीं सभी के लिए,
है ये दौलत किसी किसी के लिए,
हमारे बाद महफिल में अँधेरा होगा,
कई चराग जलाओगे रोशनी के लिए।
दोहा – जिनके होठों पे हँसी,
पांव में छाले होंगे,
हाँ यही लोग,
तेरे चाहने वाले होंगे।
दोहा – मरने के बाद भी,
गुनाह कर जाउंगा,
तुम सब पैदल चलोगे,
मैं कंधो पर जाऊंगा।
दोहा – हम छायादार पेड़,
जमाने के काम आये,
बाद सूख जाने के,
जलाने के काम आये,
तलवार की इस म्यान को,
कभी फेंकना नहीं,
मुमकिन है कभी दुश्मन को,
डराने के काम आये।
दोहा – शाख से पत्ता टूटेगा,
तो किधर जाएगा,
मिट्टी की चादरों के सिवा,
तो कुछ भी ना पायेगा।
दोहा – जिनका बेलिबासो पर,
था हँसना स्वार,
सुना है उनके बदन,
कफ़न के लिए तरस गए।
दोहा – पैर की आहट पाजेबों की,
झनकारे सुन लेती है,
धीरे बोलो राज की बातें,
दीवारे सुन लेती है,
सब गरीबी की देन है वर्ना,
इतनी जिल्लत कौन सहे,
भूखी माएं पेट भरो की,
ललकारे सुन लेती है।
दोहा – मेरी कलम मेरे जज्बात मांगने वाले,
मुझे न मांग मेरा हाथ मांगने वाले,
ये लोग इतने अमीर कैसे हो गए,
जो कल तलक थे मेरे साथ मांगने वाले।
दोहा – ज़िन्दगी कैसी कटी जंगल बताएगा,
पाकीजगी तुमको मेरी ये पीपल बताएगा,
मेरा लिबास देख कर तू फैसला न कर,
मैं कौन सा दरख़्त हूँ ये तो फल बताएगा।
दोहा – हजारों जख्म थे फिर भी,
उड़ान वाला था,
परिंदा था मगर,
बड़ी जान वाला था,
ये और बात के हालात ने,
उजाड़ दिया मुझे,
वर्ना मैं भी कभी,
शहर में मकान वाला था।
गायक – दिलीप जी गवैया।
– ये भी देखे –
१. मैं घर बना रहा हूँ किसी और के लिए।
२. जिंदगी है मगर पराई है।