मेरी ज़िन्दगी सवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
तमन्ना फिर मचल जाये,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
तर्ज – जगत के रंग क्या देखूं।
दोहा – मेरा मुझ में कुछ नहीं,
और जो कुछ है तोर,
तेरा तुझको सौंपता,
गुरुवर क्या लागे है मोर।
नब्जें जवाब दे चुकी,
सांस का कुछ पता नहीं,
आज का दिन तो कट गया,
कल की मुझे खबर नहीं।
तेरी कृपा से बेनियाज़,
कौन सी शय मिली नहीं,
झोली ही मेरी तंग है,
तेरे यहाँ कमी नहीं।
दोहा – दिल भी लेले जा भी लेले,
सर भी है पेशे नजर,
इसके आगे तो बता दे,
क्या है नजराना तेरा।
छलकते आँख के आंसू,
कही बेकार ना हो जाए,
कही बेकार ना हो जाए,
चरण छूकर बने मोती,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
मेरी ज़िन्दगी संवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
करम से बन गया पत्थर,
नहीं है रूप मेरा कोई,
नहीं है रूप मेरा कोई,
सलीके से संवर जाऊँ,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
मेरी ज़िन्दगी संवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
बिना तेरे ओ मनमोहन,
मैं मुरझा सा ही रहता हूँ,
मैं मुरझा सा ही रहता हूँ,
चमन मन के ये खिल जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
मेरी ज़िन्दगी संवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
नही मिलते हो तुम मुझसे,
तो मोह दुनिया से होता है,
तो मोह दुनिया से होता है,
कटे सारे ये भव बंधन,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
मेरी ज़िन्दगी संवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
भटकता रहता हूँ दर दर,
तेरे दीदार के खातिर,
तेरे दीदार के खातिर,
भटकना छुट जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
मेरी ज़िन्दगी संवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
मेरी ज़िन्दगी सवर जाए,
अगर तुम मिलने आ जाओ,
तमन्ना फिर मचल जाये,
अगर तुम मिलने आ जाओ।।
स्वर – दिलीप जी गवैया।