शीश जटा में गंग विराजे,
श्लोक – ॐ नाम एक सार है,
जासे मिटत कलेश,
ॐ नाम में छिपे हुए है,
ब्रम्हा विष्णु महेश।।
शीश जटा में गंग विराजे,
गले में विषधर काले,
डमरू वाले ओ डमरू वाले।।
तुमने लाखो की बिगड़ी बनाई,
अपने अंग भभूत रमाई,
जो भी तेरा ध्यान लगाए,
उसको सब दे डाले,
डमरू वाले ओ डमरू वाले।।
नित अंग पे भस्मी लगाए,
जाने किसका तू ध्यान लगाए,
रहता है अलमस्त ध्यान में,
पीकर भंग के प्याले,
डमरू वाले ओ डमरू वाले।।
सब देवो ने अमृत पाया,
तुम्हे जहर हलाहल भाया,
महल अटारी सबको बांटे,
तुम हो मरघट वाले,
डमरू वाले ओ डमरू वाले।।
भोले सुनलो अरज हमारी,
हम आये शरण तुम्हारी,
सब देवो में देव बड़े हो,
दुनिया के रखवाले,
डमरू वाले ओ डमरू वाले।।