उड़ जा काले कावा,
उड़के मैया के भवन में जाना।
तर्ज – उड़जा काले कावा
उड़ जा काले कावा,
उड़के मैया के भवन में जाना,
हो राहें तेरी तकते तकते,
सारी उम्र गुजारी,
आजा मैया इकबारी आजा,
करके शेर सवारी,
मेरे घर आ माता,
आ दुखड़े मिटा माता।।
तेरी पूजा तेरी साधना,
ध्यान तेरा हर दम,
तेरी भक्ति छोड़ी कभी ना,
ख़ुशी रही चाहे गम,
बेटे की सुध ली ना तुमने,
याद मेरी ना आई,
भूल हुई गर भूले से भी,
माफ़ करो महामाई,
मेरे घर आ माता,
आ दुखड़े मिटा माता।।
सुना है शरण पड़े की तुम हो,
लज्जा रखने वाली,
तुझसे ही पाता हरियाली,
हर पत्ता हर डाली,
अटके जब मझधार में नैया,
बन जाती हो किनारा,
तेरी एक झलक को तरसे,
कबसे लाल तुम्हारा,
मेरे घर आ माता,
आ दुखड़े मिटा माता।।
ना चंदन की चौकी घर में,
ना मखमल का बिछोना,
बिखरा किस्मत की ही तरह,
मेरे घर का कौना कौना,
हलवा पूड़ी मेवा मिश्री,
‘लक्खा’ फल ना फूल,
तर जायेगा ‘सरल’ भी पाकर,
तेरे चरण की धूल,
मेरे घर आ माता,
आ दुखड़े मिटा माता।।
उड़ जा काले कावा,
उड़के मैया के भवन में जाना,
हो राहें तेरी तकते तकते,
सारी उम्र गुजारी,
आजा मैया इकबारी आजा,
करके शेर सवारी,
मेरे घर आ माता,
आ दुखड़े मिटा माता।।